देहरादून। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य में प्रस्तावित पंचायत चुनावों पर अस्थायी रोक लगा दी है।यह फैसला अदालत ने आरक्षण व्यवस्था की स्थिति स्पष्ट न होने के कारण सुनाया है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि वह आरक्षण को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट करने में असफल रही है।
हाईकोर्ट ने साफ निर्देश दिए हैं कि जब तक सरकार पंचायत चुनावों में आरक्षण व्यवस्था को लेकर स्पष्ट नीति अदालत के समक्ष प्रस्तुत नहीं करती, तब तक चुनाव प्रक्रिया पर रोक जारी रहेगी।
इस आदेश के बाद राज्य निर्वाचन आयोग की तैयारियों को झटका लगा है, वहीं गांवों में चुनाव को लेकर चल रही हलचल भी ठंडी पड़ सकती है।
क्या है मामला:
राज्य सरकार द्वारा पंचायत चुनावों में अनुसूचित जाति, जनजाति और महिलाओं के आरक्षण को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी नहीं किए गए थे। इसी को आधार बनाकर याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
अब आगे क्या:
हाईकोर्ट ने सरकार से कहा है कि वह अगली सुनवाई में आरक्षण की स्थिति स्पष्ट करे। अब सभी की नजरें सरकार के अगले कदम और कोर्ट में प्रस्तुत होने वाली नीति पर टिकी हैं।
यह मामला न केवल कानूनी बल्कि राजनीतिक रूप से भी बड़ा माना जा रहा है, क्योंकि राज्य में ग्रामीण स्तर पर नेतृत्व के चयन की प्रक्रिया फिलहाल अनिश्चितकाल के लिए टल गई है।मामले की सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति आलोक महरा की खण्डपीठ ने आरक्षण को नियमों के तहत तय नहीं पाते हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव पर रोक लगा दी है. साथ में सरकार से जवाब पेश करने को कहा है. बीते शुक्रवार को कोर्ट ने राज्य सरकार से स्थिति से अवगत कराने को कहा था. परन्तु राज्य सरकार आज स्थिति से अवगत कराने में असफल रही है. कोर्ट के आदेश के बाद भी सरकार ने चुनाव की तिथि निकाल दी. जबकि मामला कोर्ट में चल रहा है. जिस पर कोर्ट ने पूरी चुनाव प्रक्रिया पर रोक लगा दी.
मामले के अनुसार बागेश्वर निवासी गणेश दत्त कांडपाल व अन्य ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि सरकार ने 9 जून 2025 को एक आदेश जारी कर पंचायत चुनाव हेतु नई नियमावली बनाई. साथ ही 11 जून को आदेश जारी कर अब तक पंचायत चुनाव हेतु लागू आरक्षण रोटशन को शून्य घोषित करते हुए इस वर्ष से नया रोटशन लागू करने का निर्णय लिया है. जबकि हाईकोर्ट ने पहले से ही इस मामले में दिशा निर्देश दिए हैं.
याचिकाकर्ता के अनुसार इस आदेश से पिछले तीन कार्यकाल से जो सीट आरक्षित वर्ग में थी वह चौथी बार भी आरक्षित कर दी गई है. जिस कारण वे पंचायत चुनाव में भाग नहीं ले पा रहे हैं. इस मामले में सरकार की ओर से बताया गया कि इसी तरह के कुछ मामले एकलपीठ में भी दायर हैं. जबकि याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कहा कि उन्होंने खण्डपीठ में 9 जून को जारी नियमों को भी चुनौती दी है. जबकि एकलपीठ के समक्ष केवल 11 जून के आदेश जिसमें अब नए सिरे से आरक्षण लागू करने का उल्लेख है, को चुनौती दी गई है.जो अधिसूचना जारी की गई थी, उसके अनुसार उत्तराखंड के हरिद्वार जिले को छोड़कर अन्य 12 जिलों में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कराए जाने थे।